लॉकडाउन के दौरान घर-परिवार से सैकड़ों मील दूर तेलंगाना में फंसे झारखंड के मेहनतकश मज़दूरों को बेबसी ने ऐसा घेरा कि हौसला भी हांफ उठा। सिर्फ जिंदा रहने के लिए क्या कुछ नहीं झेला। कई-कई दिन भूख की मार सहते हुए गुजारे। एक वक्त तो ऐसा भी आया जब पेट की आग बुझाने के लिए सड़क से जूठन उठाकर हलक से उतारना पड़ा। लेकिन जिल्लत भरी इस लाचारी ने यह संकल्प दृढ़ कर दिया कि अब चाहे कुछ भी हो, अपने गांव-घर लौट जाएंगे और फिर कभी लौटकर नहीं आएंगे।
विशेष ट्रेन से लौटे कोडरमा के सिकंदर यादव बताते हैं कि लॉकडाउन उनके लिए नरक से कम नहीं था। वह एक निजी कंपनी के प्रोजेक्ट में इलेक्ट्रिशियन थे। इस प्रोजेक्ट के अलावा निजी तौर पर काम कर वह अपना खर्च चलाते थे। साथ ही थोड़ी बहुत बचत घर भी भेजते थे। लॉकडाउन के बाद सब कुछ बंद हो गया। वह अपने साथियों के साथ कैंप कार्यालय में रहते थे।
कार्यालय शहर से दूर था और आसपास आबादी भी नहीं थी। पास में न राशन था और न पानी। शुरू में तो कुछ दूर जाकर सूखा राशन लाकर कुछ भी बना लेते थे। लेकिन बाद में वह भी मिलना बंद हो गया। करीब दस दिन चना और पानी से गुजारा करना पड़ा। उनके साथ बिहार के भी कुछ मजदूर थे। वह अभी भी फंसे हैं। अब कुछ भी हो जाए, गांव छोड़ कर नहीं दूसरा शहर नहीं जाएंगे। गांव में कम से कम किसी के घर एक टाइम का|