लॉकडाउन में बच्चे घर में बंद हैं। कोर्स की किताबों से दूर। यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल सकता है। मनोचिकित्सक कहते हैं कि बड़े बच्चों के लिए ई-बुक्स या फिर ई-लर्निंग की सुविधा ठीक है। लेकिन छोटे बच्चे ई-लर्निंग के अभ्यस्त नहीं हैं। अचानक किताबों की जगह उन्हें ई-लर्निंग की ओर मोड़ना भी उचित नहीं है। बच्चे उसमें व्यस्त हो जाते हैं। लॉकडाउन में पुस्तक मिल जाए तो उनका समय आसानी कटने लगे। बच्चों को लग रहा है कि इतने दिन बीत गए और उन्हें पुस्तकें नहीं मिली।
वे नई क्लास, नई किताब, नई ड्रेस, नया बैग के रोमांच से भी वंचित हैं। मोबाइल पर किताबों को पढ़ना उनके लिए कठिन है। पुस्तक सामने नहीं होने से बच्चे टीवी, मोबाइल पर ज्यादा व्यस्त रहते हैं। वैसे भी यह बच्चे पर निर्भर करता है कि वह क्या पसंद करता है। इसी वजह से बच्चों की इच्छा को ध्यान में रखते हुए इस दौरान 24 घंटे का रुटीन बनाने की जरूरत है। याद करने के लिए मार्कर से निशान लगाना, पन्ने मोड़ कर रखना, उसका एक अलग आनंद है। ई-लर्निंग में बच्चे कंसनट्रेट नहीं कर पाते हैं। ऑनलाइन माध्यम कभी भी पुस्तकों की महत्ता को रिप्लेस नहीं कर सकता है।
(पीएमसीएच मनोचिकित्सा विभाग के हेड डॉ. पीके सिंह, आईजीआईएमएस के डॉ. राजेश कुमार और पटना एम्स के डॉ. पंकज कुमार से बातचीत के आधार पर।)
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